srshti rachana

नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे।उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं।
विस्तृत विवरण के लिए कृप्या पढ़े निम्न लखित सृष्टी रचना : कविर्देव ( कबीर परमेश्वर ) ने सुक्ष्म वेद अर्थात् कर्विवाणी में अपने द्वारा रची सृष्टी का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है । सर्व प्रथम केवल एक स्थान ' अनामी ( अनामय ) लोक ' था । जिसे अकह लोक भी कहा जाता है , पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था । उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है । सभी आत्माएं उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी । इसी कविर्देव को उपमात्मक ( पदवी का ) नाम अनामी पुरुष है ( पुरुष का अर्थ प्रभु होता है । प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है , इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है । ) अनामी पुरूष के एक रोम कुप का प्रकाश संख सुर्यों की रोशनी से भी अधिक है । विशेष : - जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्री जी का शरीर का नाम तो अन्य होता है तथा पद का उपमात्मक ( पदवी का ) नाम प्रधानमंत्री होता है । कई बार प्रधानमंत्री जी अपने पास कई विभाग भी रख लेते हैं । तब जिस भी विभाग के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करते हैं तो उस समय उसी पद को लिखते हैं । जैसे गृहमंत्रालय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेगें तो अपने को गृह मंत्री लिखेगें । वहाँ उसी व्यक्ति के हस्ताक्षर की शक्ति कम होती है । इसी प्रकार कबीर परमेश्वर ( कविदेव ) की रोशनी में अंतर भिन्न - २ लोकों में होता जाता है । ठीक इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा कविदेव ( कबीर परमेश्वर ) ने नीचे के तीन और  लोको ( अगमलोक , अलख लोक , सतलोक ) की रचना शब्द ( वचन ) से की । यही पूर्णब्रह्म परमात्मा कविदेव ( कबीर परमेश्वर ) ही अगम लोक में प्रकट हुआ तथा कविदेव ( कबीर परमेश्वर ) अगम लोक का भी स्वामी है तथा वहीं इनका उपमात्मक ( पदवी का ) नाम अगम पुरुष अर्थात् अगम प्रभु है । इसी अगम प्रभु का मानव सदृश शरीर बहुत तेजोमय है जिसके एक रोम कूप की रोशनी खरब सूर्य की रोशनी से भी अधिक है । यह पूर्ण परमात्मा कविर्देव ( कबिर देव = कबीर परमेश्वर ) अलख लोक में प्रकट हुआ तथा स्वयं ही अलख लोक का भी स्वामी है तथा उपमात्मक ( पदवी का ) नाम  अगम पुरुष भी इसी परमेश्वर का है तथा इस पूर्ण प्रभु को मानव सदृश शरीर  तेजोमय ( स्वज्योति ) स्वयं प्रकाशित है । एक रोम कूप की रोशनी अरब सूर्यों के प्रकाश से भी ज्यादा है । यही पूर्ण प्रभु सतलोक में प्रकट हुआ तथा सतलोक का भी अधिपति यही है । इसलिए इसी का उपमात्मक ( पदवी का ) नाम सतपुरुष ( अविनाशी प्रभु ) है । इसी का नाम अकालमूर्ति - शब्द स्वरूपी राम - पूर्ण ब्रह्म - परम अक्षर ब्रह्म आदि । इसी सतपुरुष कविर्देव ( कबीर प्रभु ) का मानव सदृश शरीर तेजोमय है । जिसके  एक रोमकूप का प्रकाश करोड़ सूर्योों तथा इतने ही चन्द्रमाओं के प्रकाश से भी अधिक है।
इस कविदेव ( कवीर प्रभु) ने सतपुरुष रूप में प्रकट होकर सतलोक में विराजमान होकर प्रथम सतलोक में अन्य रचना की । एक शब्द ( वचन ) से सोलह द्वीपों की रचना की । फिर सोलह शब्दों से सोलह पुत्रों की उत्पत्ति की । एक मानसरोवर की रचना की जिसमें अमृत भरा । सोलह पुत्रों के नाम हैं : - ( 1 ) " कुर्म " , 2 ) " ज्ञानी " , ( 3 ) " विवेक " , ( 4 ) " तेज " , ( 5 ) ' सहज ' , ( 6 ) “ सन्तोष ” , ( 7 ) ‘ सुरति ” , ( 8 ) “ आनन्द " ( 9 ) “ क्षमा " , ( 10 ) “ निष्काम , ( 11) ‘ जलरंगी ' ( 12 ) अचिन्त " , ( 13 ) “ प्रेम ” , ( 14 ) “ दयाल " , ( 15 ) “ धैर्य " ( 16 ) योग संतायन ' अर्थात " योगजीत " । सतपुरुष कविर्देव ने अपने पुत्र अचिन्त को सत्यलोक की अन्य रचना का भार सौंपा तथा शक्ति प्रदान की । अचिन्त ने अक्षर पुरुष ( परब्रह्म ) की शब्द से उत्पत्ति की तथा कहा कि मेरी मदद करना । अक्षर पुरुष स्नान करने मानसरोवर पर गया , वहाँ आनन्द आया तथा सो गया । लम्बे समय तक बाहर नहीं आया । तब अचिन्त की प्रार्थना पर अक्षर पुरुष को नींद से जगाने के लिए कविर्देव ( कबीर परमेश्वर )ने उसी मानसरोवर से कुछ अमृत जल लेकर एक अण्डा बनाया तथा उस अण्डे में एक आत्मा प्रवेश की तथा अण्डे को मानसरोवर के अमृत जल में छोड़ा । अण्डे की गड़गड़ाहट से अक्षर पुरुष की निंदा भंग हुई । उसने अण्डे को क्रोध से देखा जिस कारण से अण् के दो भाग हो गए । उसमें से ज्योति निरजन ( क्षर पुरुष ) निकाला जो आगे चलकर ' काल ' कहलाया । इसका वास्तविक नाम " कैल ” है । तब सतपुरुष  ने आकाशवाणी की कि आप दोनों बाहर आओ तथा अचिंत के द्वीप में रहो। आज्ञा पाकर अक्षर पुरुष तथा क्षर पुरुष ( केल ) दोनों अचिंत के द्वीप में रहने लगे ( बच्चों की नालायकी उन्हीं को दिखाई कि कहीं फिर प्रभुता की तड़फ न बन जाए , क्योंकि समर्थ बिन कार्य सफल नहीं होता ) फिर पूर्ण धनी कविर्देव ने सर्व रचना स्वयं की । अपनी शब्द शक्ति से एक राजेश्वरी ( राष्ट्री ) शक्ति उत्पन्न की , जिससे सर्व ब्रह्माण्डो को रथापित किया । इसी को पराशक्ति परानन्दनी भी कहते हैं । पूर्ण ब्रह्म ने सर्व आत्माओं को अपने ही अन्दर से अपनी वचन शक्ति से अपने मानव शरीर सदृश उत्पन्न किया । प्रत्येक हंस आत्मा का परमात्मा जैसा ही शरीर रचा  जिसका तेज 16  सूर्यों जैसा मानव सदृश ही है । परन्तु परमेश्वर  के शरीर के एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ों सूर्यों से भी ज्यादा है । बहुत समय उपरान्त क्षर पुरुष ( ज्योति निरंजन ) ने सोचा कि हम तीनों ( अचिन्त - अक्षर पुरुष - क्षर पुरुष)एक द्वीप में रह रहे हैं तथा अन्य एक - एक द्वीप में रह रहे हैं । मैं भी  साधना करके अलग द्वीप प्राप्त करूंगा । उसने ऐसा विचार करके एक पैर पर खड़ा होकर सत्तर ( 70 ) युग तक तप किया ।


विस्तृत विवरण  के लिए कृप्या अगले आर्टिकल का इंतजार करें !
https://youtu.be/oGo8le8pqv4
मैं मिलूंगा आपसे ऐसी ही रोचक जानकारी के साथ ।
     
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