Posts

Showing posts with the label know about how Earth was build

srshti rachana

Image
नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। " पवित्र शिव महापुराण में सृष्टी रचना का  प्रमाण (काल ब्रह्म व दुर्गा से विष्णु , ब्रह्मा व शिव की उत्पत्ति)   इसी का  प्रमाण पवित्र श्री शिव पुराण गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित , अनुवादकर्ता श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार , इसके अध्याय 6 रूद्र संहिता , पृष्ठ नं . 100 पर कहा कि जो मर्ति रहित परब्रह्म है , उसी की मूर्ति भगवान सदाशिव है।इनके शरीर से एक शक्ति निकली , वह शक्ति अम्बिका , प्रकृति ( दुर्गा ) , त्रिदेव जननी (श्री ब्रह्मा जी , श्री विष्ण जी तथा श्री शिव जी को उत्पन्न करने वाली माता ) कहलाई। जिसकी आठ भुजाएं हैं । वे जो सदाशिव हैं , उन्हें शिव , शंभू और महेश्वर भी कहते ( प्रष्ठ नं . 101 पर ) वे अपने सारे अंगों में भस्म रमाये रहते हैं । उन काल रूपी ब्रह्म ने एक शिवलोक नामक क्षेत्र का निर्माण किया । फिर दोनों ने पति - पत्नी का व्यवहार किया जिससे एक पुत्र उत्...

srshti rachana

Image
नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। काण्ड नं . 4 अनुवाक नं . 1 मंत्र 6.   नूनं तदस्य काव्यो हिनोति महो देवस्य पूर्व्यस्य धाम । एष जज्ञे बहुभिः साकमित्था पूर्वे अर्धे विषिते ससन् नु । । 6 । ।  नूनम् - तत् - अस्य - काव्यः - महः - देवस्य - पूर्व्यस्य - धाम - हिनोति - पूर्वे विषिते - एष - जज्ञे - बहुभिः - साकम् - इत्था - अर्धे - ससन् - नु ।  • अनुवाद - ( नूनम् ) निसंदेह ( तत् ) वह पूर्ण परमेश्वर अर्थात् तत् ब्रह्म ही ( अस्य ) इस ( काव्यः ) भक्त आत्मा जो पूर्ण परमेश्वर की भक्ति विधिवत करता है को वापिस ( मह:) सर्वशक्तिमान ( देवस्य ) परमेश्वर के ( पूर्व्यस्य ) पहले के ( धाम ) लोक में अर्थात् सत्यलोक में ( हिनोति ) भेजता है । ( पूर्वे ) पहले वाले ( विषिते ) विशेष चाहे हुए ( एष ) इस परमेश्वर को व ( जज्ञे ) सृष्टी उत्पति के ज्ञान को जान कर ( बहुभिः ) बहुत आनन्द ( साकम् ) के साथ ( अर्धे ) आधा (ससन् ) सोता हुआ ( इत्था...

srshti rachana

Image
नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। काण्ड नं . 4 अनुवाक नं . 1 मंत्र नं . 4 सः हि दिवः सः पृथिव्या ऋतस्था मही क्षेमं रोदसी अस्कभायत् । महान् मही अस्कभायद् वि जातो द्यां सद्म पार्थिवं चं रजः । । 4 । । सः - हि - दिवः – स - पृथिव्या - ऋतस्था — मही – क्षेमम् - रोदसी – अकस्मायत् - महान् – मही- अस्कभायद् - विजातः – धाम्- सदम्- पार्थिवम् - च - रजः अनुवाद - ( स: ) उसी सर्वशक्तिमान परमात्मा ने ( हि ) निःसंदेह ( दिवः ) ऊपर के दिव्य लोक जैसे सत्य लोक , अलख लोक , अगम लोक तथा अनामी अर्थात् अकह लोक अर्थात् दिव्य गुणों युक्त लोकों को ( ऋतस्था ) सत्य स्थिर अर्थात् अजर - अमर रूप से स्थिर किए ( स ) उन्हीं के समान ( पथिव्या ) नीचे के पथ्वी वाले सर्व लोकों जैसे परब्रह्म के सात संख तथा ब्रह्म / काल के इक्कीस ब्रह्मण्ड ( मही ) पृथ्वी तत्व से ( क्षेमम् ) सुरक्षा के साथ ( अस्कभायत् ) ठहराया ( रोदसी ) आकाश तत्व तथा पृथ्वी तत्व दोनों से ऊपर नीचे के...

srshti rachana

Image
नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। “ पवित्र अथर्ववेद में सृष्टी रचना का प्रमाण "                                            काण्ड नं.4 अनुवाक नं .1मंत्र नं.1 :.        ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद् वि सीमतः सुरुचो वेन आवः ।        स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च वि वः । । 1 ।          ब्रह्म - ज - ज्ञानम् - प्रथमम् - पुरस्तात् विसिमतः – सुरुचः – वेनः - आवः सः- बुध्न्याः – उपमा - अस्य – विष्ठाः – सतः - च - योनिम् - असतः- च – वि वः  अनुवाद : - ( प्रथमम् ) प्राचीन अर्थात् सनातन ( ब्रह्म ) परमात्मा ने ( ज ) प्रकट होक( ज्ञानम्) अपनी सूझ - बूझ से ( पुरस्तात् ) शिखर में अर्थात् सतलोक आदि को ( सरुचः) स्वइच्छा से बड़े चाव से स्वप्रकाशित ...

srshti rachana

Image
नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। "परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्डों की स्थापना " कबीर परमेश्वर ( कविर्देव ) ने आगे बताया है कि परब्रह्म ( अक्षर पुरुष ) ने कार्य में गफलत की क्योंकि यह मानसरोवर में सो गया तथा जब परमेश्वर ( मैंने अर्थात् कबीर साहेब ने ) उस सरोवर में अण्डा छोड़ा तो अक्षर पुरुष ( परब्रह्म )ने उसे क्रोध से देखा । इन दोनों अपराधों के कारण इसे भी सात संख ब्रह्मण्डो सहित सतलोक से बाहर कर दिया । दूसरा कारण अक्षर पुरुष ( परब्रह्म ) अपने साथी ब्रह्म ( क्षर पुरुष ) की विदाई में व्याकुल होकर परमपिता कविर्दव ( कबीर परमेश्वर ) की  याद भूलकर उसी को याद करने लगा तथा सोचा कि क्षर पुरुष (ब्रह्म)  तो बहुत  आनन्द मना रहा होगा , मैं पीछे रह गया तथा अन्य कुछ आत्माएँ जो परब्रह्म के  साथ सात संख ब्रह्मण्डों में जन्म - मृत्यु का कर्मदण्ड भोग रही हैं , उन हंसआत्माओं  की विदाई की याद में खो गई जो ब्रह्म ( का...

srshti rachana

नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। " माता ( दुर्गा ) द्वारा ब्रह्मा को शाप देना "           तब माता ने ब्रह्मा से पूछा क्या तुझे तेरे पिता के दर्शन हुए ? ब्रह्मा ने कहा हाँ मुझे पिता को दर्शन हुए हैं । दुर्गा ने कहा साक्षी बता । तब ब्रह्मा ने कहा इन दोनों के समक्ष साक्षात्कार हुआ है । देवी ने उन दोनों लड़कियों से पूछा क्या तुम्हारे सामने ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ है तब दानों ने कहा कि हाँ , हमने अपनी आँखों से देखा है । फिर भवानी ( प्रकृति ) को संशय हुआ कि मुझे तो ब्रह्म ने कहा था कि मैं किसी को दर्शन नहीं दूंगा , परन्त ये कहते हैं कि दर्शन हुए हैं । तब अष्टंगी ने ध्यान लगाया और काल / ज्योति निरंजन से पूछा कि यह क्या कहानी है ? ज्योति निंरजन जी ने कहा कि ये तीनों झूठ बोल रहे हैं । तब माता ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो । आकाशवाणी हुई हैकि इन्हें कोई दर्शन नहीं हुए । यह बात सुनकर ब्रह्मा ने कहा कि...