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srshti rachana

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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं।      " आदरणीय गरीबदास साहेब जी की अमृतवाणी में                            सृष्टी रचना का प्रमाण " आदि रमैणी ( सद् ग्रन्थ पृष्ठ नं . 690 से 692 तक ) आदि रमैणी अदली सारा । जा दिन होते धुंधुंकारा । । 1 । । सतपुरुष कीन्हा प्रकाशा । हम होते तखत कबीर खवासा । । 2 । ।  मन मोहिनी सिरजी माया । सतपुरुष एक ख्याल बनाया । । 3 । ।  धर्मराय सिरजे दरबानी । चौसठ जुगतप सेवा ठानी । । 4 । । पुरुष पृथिवी जाकूं दीन्ही । राज करो देवा आधीनी । । 5 । । । ब्रह्मण्ड इकीस राज तुम्ह दीन्हा । मन की इच्छा सब जुग लीन्हा । । 6 । ।   माया मूल रूप एक छाजा । मोहि लिये जिनहूँ धर्मराजा । । 7 । ।   धर्म का मन चंचल चित धार्या । मन माया का रूप बिचारा । । 8 । ।  चंचल चेरी चपल चिरागा । या के परसे सरबस जाग...

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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। " पूज्य कबीर परमेश्वर ( कविर् देव ) जी की अमृतवाणी में सृष्टी रचना "  विशेष : - निम्न अमृतवाणी सन् 1403 से [जब पूज्य कविर्देव ( कबीर परमेश्वर ) लीलामय शरीर में पाँच वर्ष के हुए ] सन् 1518 [जब कविर्देव ( कबीर परमेश्वर मगहर स्थान से सशरीर सतलोक गए ] के बीच में लगभग 600 वर्ष पूर्व परम पूज्य कबीर परमेश्वर ( कविर्देव ) जी द्वारा अपने निजी सेवक ( दास भक्त ) आदरणीय धर्मदास साहेब जी को सुनाई थी तथा धनी धर्मदास साहेब जी ने लिपिबद्ध की थी । परन्तु उस समय के पवित्र हिन्दुओं तथा पवित्र मुसलमानों के नादान गुरुओं ( नीम - हकीमों ) ने कहा कि यह धाणक ( जुलाहा ) कबीर झूठा है । किसी भी सद् ग्रन्थ में श्री ब्रह्मा जी , श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी के माता - पिता का नाम नहीं है । ये तीनों प्रभु अविनाशी हैं इनका जन्म मृत्यु नहीं होता । न ही पवित्र वेदों व पवित्र कुरान शरीफ आदि में कबीर परमेश्वर का प...

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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। गीता अध्याय नं 15 का श्लोक नं . 17  उत्तमः ,.पुरुष , तु , अन्यः , परमात्मा , इति , उदाहृतः , यः , लोकत्रयम् आविश्य , बिभर्ति , अव्ययः , ईश्वरः । ।  अनुवाद:( उत्तम: ) उत्तम ( पुरुष: ) प्रभु ( तु ) तो ( अन्य: ) उपरोक्त दोनों प्रभुओं " क्षर पुरुष तथा  अक्षर पुरुष " से भी अन्य ही है ( इति ) यह वास्तव में ( परमात्मा ) परमात्मा ( उदाहृतः ) कहा गया है ( य: ) जो ( लोकत्रयम् ) तीनों लोकों में ( आविश्य ) प्रवेश करके ( बिभर्ति ) सबका धारण पोषण करता है एवं ( अव्यय: ) अविनाशी ( ईश्वर: ) ईश्वर ( प्रभुओं में श्रेष्ठ अर्थात् समर्थ प्रभु ) है । भावार्थ - गीता ज्ञान दाता प्रभु ने केवल इतना ही बताया है कि यह संसार उल्टे लटके वृक्ष तुल्य जानो । ऊपर जड़ें ( मूल ) तो पूर्ण परमात्मा है । नीचे टहनीयां आदि अन्य हिस्से जानों । इस संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग का भिन्न - भिन्न विवरण जो स...

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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। " पवित्र ऋग्वेद में सृष्टी रचना का प्रमाण "  मण्डल 10 सुक्त 90 मंत्र 1 सहस्रशीर्षा पुरूषः सहस्राक्षः सहस्रपात् । स भूमिं विश्वतों वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् । । 1 । ।  सहस्रशिर्षा - पुरूषः - सहस्राक्षः - सहस्रपात् - स - भूमिम् - विश्वतः - वृत्वा - अत्यातिष्ठत् - दशंगुलम् ।  अनुवाद : - ( पुरूषः ) विराट रूप काल भगवान अर्थात् क्षर पुरूष ( सहस्रशिर्षा ) हजार  सिरों वाला (सहस्राक्षः ) हजार आँखों वाला ( सहस्रपात् )हजार पैरों वाला है ( स ) वह काल ( भूमिम् ) पृथ्वी वाले इक्कीस ब्रह्मण्डों को ( विश्वतः ) सब ओर से ( दशंगुलम् ) दसों अंगुलियों से अर्थात् पूर्ण रूप से काबू किए हुए ( वृत्वा ) गोलाकार घेरे में घेर कर ( अत्यातिष्ठत् ) इस से बढ़कर अर्थात् अपने काल लोक में सबसे न्यारा भी इक्कीसवें ब्रह्मण्ड में ठहरा है अर्थात् रहता है ।  भावार्थ : - इस मंत्र में विराट ( काल...