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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे।उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं।

" ब्रह्म ( काल ) की अव्यक्त रहने की प्रतिज्ञा सुक्ष्म वेद से शेष सृष्टि रचना - - - - - -
                              तीनों पुत्रों की उत्पत्ति के पश्चात् ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा ( प्रकृति ) से कहा मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि भविष्य में मैं किसी को अपने वास्तविक रूप में दर्शन नहीं दूंगा । जिस कारण से मैं अव्यक्त माना जाऊँगा । दुर्गा से कहा कि आप मेरा भेद किसी को मत देना । मै गुप्त रहूँगा । दुर्गा ने पूछा कि क्या आप अपने पुत्रों को भी दर्शन नहीं दोगे ? ब्रह्म ने कहा मैं अपने पुत्रों को तथा अन्य को किसी भी साधना से दर्शन नहींदूगा , यह मेरा अटल नियम रहेगा । दुर्गा ने कहा यह तो आपका उत्तम नियम नही जो आप अपनी संतान से भी छुपे रहोगे । तब काल ने कहा दुर्गा मेरी विवशता है । मुझे एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों का आहार करने का शाप लगा है । यदि मेरे पुत्रो ( ब्रह्मा , विष्णु , महेश ) को पता लग गया तो ये उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार का कार्य नहीं करेंगे । इसलिए यह मेरा अनुत्तम नियम सदा रहेगा । जब ये तीनों को बड़े हो  जाएँ तो इन्हें अचेत कर देना ।
मे विषय में नहीं बताना , नहीं तो मैं तुझे भी दण्ड दूंगा , दुर्गा इस डर के मारे वास्तविकता नहीं बताती । इसीलिए गीता अध्याय 7 श्लोक 24 में कहा है कि यह बुद्धिहीन जन समुदाय मेरे अनुत्तम नियम से अपिरिचत कि मैं कभी भी किसी के सामने प्रकट नहीं होता अपनी योग माया से छुपा रहता हूं । इसलिए  मुझ अव्यक्त को मनुष्य रूप में आया हुआ अर्थात् कृष्ण मानते हैं । ( अबुद्धयः ) बुद्धि हीन ( मम् ) मेरे ( अनुत्तमम् ) अनुत्तम अर्थात् घटिया ( अव्ययम् ) अविनाशी ( परम् भावम् ) विशेष भाव को ( अजानन्तः ) न जानते हुए ( माम् अव्यक्तम् ) मुझ अव्यक्त को  ( व्यक्तिम् ) मनुष्य रूप में ( आपन्नम ) आया ( मन्यन्ते ) मानते है अर्थात् मै कृष्ण नहीं हूं। ( गीता अध्याय 7 श्लोक 24 )गीता अध्याय 11 श्लोक 47 तथा 48 में कहा है कि यह मेरा वास्तविक काल रूप है ।

  इसके दर्शन अर्थात ब्रह्म प्राप्ति न वेदों में वर्णित विधि से , न जप से , न तप से  तथा न किसी क्रिया से हो सकती है । जब तीनों बच्चे युवा हो गए तब माता भवानी ( प्रकृति , अष्टगी ) ने कहा कि तुम सागर मन्थन करो । प्रथम बार सागर मन्थन किया तो ( ज्योति निरंजन ने अपने श्वांसों  द्वारा चार वेद उत्पन्न किए । उनको गुप्त वाणी द्वारा आज्ञा दी कि सागर में निवास करो ) चारों वेद निकले वह ब्रह्मा ने लिए । वस्तु लेकर तीनों बच्चे माता के पास आए तब माता ने कहा कि चारों वेदों को ब्रह्मा रखे व पढे । | नोट : - वास्तव में पूर्णब्रह्म ने , ब्रह्म अर्थात काल को पाँच वेद प्रदान किए थे । लेकिन ब्रह्म ने केवल चार वेदों को प्रकट किया । पाँचवां वेद छुपा दिया । जो पूर्ण परमात्मा ने स्वयं प्रकट होकर कविर्गिर्भी: अर्थात् कविर्वाणी ( कवीर वाणी ) द्वारा लोकोक्तियों व दोहों के माध्यम से प्रकट किया है । दूसरी बार सागर मन्थन किया तो तीन कन्याएँ मिली । माता ने तीनों को बांट दिया । प्रकृति ( दुर्गा) ने अपने ही अन्य तीन रूप ( सावित्री , लक्ष्मी तथा पार्वती ) धारण किए तथा समुन्द्र में छुपा दी । सागर मन्थन के समय बाहर आ गई । वही प्रकृति तीन रूप हुई तथा भगवान ब्रह्मा को सावित्री , भगवान विष्णु को लक्ष्मी , भगवान शंकर को पार्वती पत्नी रूप में दी । तीनों ने भोग विलास किया , सुर तथा असुर दोनों पैदा हुए । | ( जब तीसरी बार सागर मन्थन किया तो चौदह रत्न ब्रह्मा को तथा अमृत विष्णु को व देवताओं को , मद्य ( शराब ) असुरों को तथा विष परमार्थ शिव ने अपने कंठ में ठहराया । यह तो बहुत बाद की बात है । जब ब्रह्मा वेद पढ़ने लगा तो पता चला कि कोई सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला कुल का मालिक पुरूष ( प्रभु ) और है । तब ब्रह्मा जी ने विष्णु जी व शंकर जी को बताया कि वेदों में वर्णन है कि सृजनहार कोईऔर प्रभु है परन्तु वेद कहते हैं कि भेद हम भी नहीं जानते , उसके लिए संकेत है कि किसी तत्वदर्शी संत से पूछो । तब ब्रह्मा माता के पास आया और सव वृतांत कह । सुनाया । माता कहा करती थी कि मेरे अतिरिक्त और कोई नहीं है । मैं ही कर्ता हैं । मैं ही सर्वशक्तिमान हैं परन्तु ब्रह्मा ने कहा कि वेद ईश्वर कृत हैं यह झूठ नहीं हो सकते । दुर्गा ने कहा कि तेरा पिता तुझे दर्शन नहीं देगा , उसने प्रतिज्ञा की हुई है । तव ब्रह्मा ने कहा माता जी अब आप की बात पर अविश्वास हो गया है । मैं उस पुरूष ( प्रभु ) का पता लगाकर ही रहूँगा । दुर्गा ने कहा कि यदि वह तुझे दर्शन नहीं देगा तो तुम क्या करोगे ? ब्रह्मा ने कहा कि मैं आपको शक्ल नहीं दिखाऊँगा । दूसरी तरफ ज्योति निरंजन ने कसम खाई है कि मैं अव्यक्त रहूँगा किसी को दर्शन नहीं दूंगा अथति 21 ब्रह्मण्ड में कभी भी अपने वास्तविक काल रूप में आकार में नहीं आऊँगा । गीता अध्याय नं . 7 का श्लोक नं . 24 अव्यक्तम् , व्यक्तिम् , आपन्नम् , मन्यन्ते , माम् , अबुद्धयः । । परम् , भावम् , अजानन्तः , मम , अव्ययम् , अनुत्तमम् । । 24 । । । अनुवाद : ( अबुद्धयः ) बुद्धिहीन लोग ( मम् ) मेरे ( अनुतमम् ) अश्रेष्ठ ( अव्ययम् ) अटल ( परम् ) परम ( भावम् ) भावको ( अजानन्तः ) न जानते हुए ( अव्यक्तम् ) अदृश्यमान ( माम् ) मुझ कालको ( व्यक्तिम् ) आकार में कृष्ण अवतार ( आपन्नम् ) प्राप्त हुआ ( मन्यन्ते ) मानते हैं । गीता अध्याय नं . 7 का श्लोक नं . 25 न , अहम् , प्रकाशः , सर्वस्य , योगमायासमावृतः । । मूढः , अयम् , न , अभिजानाति , लोकः , माम् , अजम् , अव्ययम् । । 25 । । । अनुवाद : ( अहम् ) मैं ( योगमाया समावृतः ) योगमायासे छिपा हुआ ( सर्वस्य ) सबके ( प्रकाशः ) प्रत्यक्ष ( न ) नहीं होता अर्थात् अदृश्य अर्थात् अव्यक्त रहता हूँ इसलिये ( अजम् ) जन्म न लेने वाले ( अव्ययम् ) अविनाशी अटल भावको ( अयम् ) यह ( मूढः ) अज्ञानी ( लोकः ) जनसमुदाय संसार ( माम् ) मुझे ( न ) नहीं ( अभिजानाति ) जानता , अर्थात् मुझको अवतार रूप में आया समझता है । क्योंकि ब्रह्म अपनी शब्द शक्ति से अपने नाना रूप बना लेता है , यह दुर्गा का पति है इसलिए इस मंत्र में कह रहा है कि मैं श्री कृष्ण आदि की तरह दुर्गा से जन्म नहीं लेता ।
विस्तृत विवरण  के लिए कृप्या अगले आर्टिकल का इंतजार करें !
https://youtu.be/oGo8le8pqv4
मैं मिलूंगा आपसे ऐसी ही रोचक जानकारी के साथ ।
     
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