srshti rachana
नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे।उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं।
" पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण में सृष्टी रचना का प्रमाण "
"ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के माता - पिता "
( दुर्गा और ब्रह्म के योग से ब्रह्मा , विष्णु और शिव का जन्म )
पवित्र. श्रीमद्देवी महापुराण तीसरा स्कन्द अध्याय 1 - 3 (गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित , अनुवादकर्ता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार तथा चिमन लाल गोस्वामी जी , पृष्ठ नं . 114 से ) पृष्ठ नं . 114 से 118 तक विवरण है कि कितने ही आचार्य भवानी को सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करने वाली बताते हैं । वह प्रकृति कहलाती है तथा ब्रह्म के साथ अभेद सम्बन्ध है जैसे पत्नी को अर्धागनी भी कहते हैं अर्थात् दुर्गा ब्रह्म ( काल ) की पत्नी है । एक ब्रह्माण्ड की सृष्टी रचना के विषय में राजा श्री परीक्षित के पूछने पर श्री व्यास जी ने बताया कि मैंने श्री नारद जी से पूछा था कि हे देवर्षे ! इस ब्रह्मण्ड की रचना कैसे हुई ? मेरे इस प्रश्न के उत्तर में श्री नारद जी ने कहा कि मैंने अपने पिता श्री ब्रह्मा जी से पूछा था कि हे पिता श्री इस ब्रह्माण्ड की रचना आपने की या श्री विष्णु जी इसके रचयिता हैं या शिव जी ने रचा है ? सच - सच बताने की कृपा करें । तब मेरे पूज्य पिता श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि बेटा नारद , मैंने अपने आपको कमल के फूल पर बैठा पाया था , मुझे नहीं मालूम इस अगाध जल में मैं कहाँ से उत्पन्न हो गया । एक हजार वर्ष तक पृथ्वी का अन्वेषण करता रहा , कहीं जल का ओर - छोर नहीं पाया । फिर आकाशवाणी हुई कि तप करो । एक हजार वर्ष तक तप किया । फिर सृष्टी करने की आकाशवाणी हुई । इतने में मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस आए , उनके भय से मैं कमल का डण्ठल पकड़ कर नीचे उतरा । वहाँ भगवान विष्णु जी शेष शैय्या पर अचेत पड़े थे । उनमें से एक स्त्री ( प्रेतवत प्रविष्ट दुर्गा ) निकली । वह आकाश में आभूषण पहने दिखाई देने लगी । तब भगवान विष्णु होश में आए । अब मैं तथा विष्णु जी दो थे । इतने में भगवान शंकर भी आ गए । देवी ने हमें विमान में बैठाया तथा ब्रह्म लोक में ले गई । वहाँ एक ब्रह्मा , एक विष्णु तथा एक शिव और देखा फिर एक देवी देखी , उसे देख कर विष्णु जी ने विवेक पूर्वक निम्न वर्णन किया ( ब्रह्म काल ने भगवान् विष्णु को चेतना प्रदान कर दी , उसको अपने बाल्यकाल की याद आई तब बचपन की कहानी सुनाई। )
पृष्ठ नं . 119 - 120 पर भगवान विष्णु जी ने श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी से कहा कि यह हम तीनों की माता है , यही जगत् जननी प्रकृति देवी है । मैंने इस देवी को तब देखा था जब मैं छोटा सा बालक था , यह मुझे पालने में झुला रही थी ।
तीसरा स्कंद पृष्ठ नं . 123 पर श्री विष्णु जी ने श्री दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा - तुम शुद्ध स्वरूपा हो , यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है , मैं ( विष्णु ) , ब्रह्मा और शंकर हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं । हमारा आविर्भाव ( जन्म ) और तिरोभाव ( मृत्यु ) हुआ करता है अर्थात् हम तीनों देव नाशवान हैं , केवल तुम ही नित्य ( अविनाशी ) हो , जगत जननी हो , प्रकृति देवी हो ।
भगवान शंकर बोले - देवी यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट ( उत्पन्न) हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे ही बालक हुए । फिर मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम्ही हो ।
विचार करें : - उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी , श्री विष्णु जी , श्री शिव जी नाशवान हैं । मृत्युंजय ( अजर - अमर ) व सर्वेश्वर नही हैं दुर्गा ( प्रकृति ) के पुत्र हैं तथा ब्रह्म ( काल - सदाशिव ) इनका पिता है ।
तीसरा स्कंद पृष्ठ नं . 125 पर ब्रह्मा जी के पूछने पर कि हे माता ! वेदों में जो ब्रह्म कहा है वह आप ही हैं या कोई अन्य प्रभु है ? इसके उत्तर में यहाँ तो दुर्गा कह रही है कि मैं तथा ब्रह्म एक ही हैं । फिर इसी स्कंद अ . 6 के पृष्ठ नं . 129 पर कहा है कि अब मेरा कार्य सिद्ध करने के लिए विमान पर बैठ कर तुम लोग शीघ्र पधारो ( जाओ ) । कोई कठिन कार्य उपस्थित होने पर जब तुम मुझे याद करोगे , तब मैं सामने आ जाऊँगी । देवताओं मेरा ( दुर्गा का ) तथा ब्रह्म का ध्यान तुम्हें सदा करते रहना चाहिए । हम दोनों का स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे कार्य सिद्ध होने में तनिक भी संदेह नहीं है ।
उपरोक्त व्याख्या से स्वसिद्ध है कि दुर्गा ( प्रकृति ) तथा ब्रह्म ( काल ) ही तीनों देवताओं के माता - पिता हैं तथा ब्रह्मा , विष्णु व शिव जी नाशवान हैं व पूर्ण शक्ति युक्त नहीं हैं ।
तीनों देवताओं ( श्री ब्रह्मा जी , श्री विष्णु जी , श्री शिव जी ) की शादी दुर्गा ( प्रकृति देवी ) ने की । पृष्ठ नं . 128 - 129 पर , तीसरे स्कंद में ।
गीता अध्याय नं . 7 का श्लोक नं . 12
ये , च , एव , सात्विकाः , भावाः , राजसाः , तामसाः , च , ये, मतः , एव , इति , तान् , विद्धि , न , तु , अहम् , तेषु ,ते,मयि।। अनुवाद : ( च ) और ( एव ) भी ( ये ) जो ( सात्विकाः ) सत्वगुण विष्णु जी से स्थिति ( भावाः ) भाव हैं और ( ये ) जो ( राजसाः ) रजोगुण ब्रह्मा जी से उत्पत्ति ( च ) तथा ( तामसाः ) तमोगुण शिव से संहार हैं ( तान् ) उन सबको तू ( मतः , एव ) मेरे द्वारा सुनियोजित नियमानुसार ही होने वाले हैं ( इति ) ऐसा ( विद्धि ) जान ( तु ) परन्तु वास्तवमें ( तेषु ) उनमें ( अहम ) मैं और ( ते ) वे ( मयि ) मुझमें ( न ) नहीं हैं । "
विस्तृत विवरण के लिए कृप्या अगले आर्टिकल का इंतजार करें !
" पवित्र श्रीमद्देवी महापुराण में सृष्टी रचना का प्रमाण "
"ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के माता - पिता "
( दुर्गा और ब्रह्म के योग से ब्रह्मा , विष्णु और शिव का जन्म )
पवित्र. श्रीमद्देवी महापुराण तीसरा स्कन्द अध्याय 1 - 3 (गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित , अनुवादकर्ता श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार तथा चिमन लाल गोस्वामी जी , पृष्ठ नं . 114 से ) पृष्ठ नं . 114 से 118 तक विवरण है कि कितने ही आचार्य भवानी को सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करने वाली बताते हैं । वह प्रकृति कहलाती है तथा ब्रह्म के साथ अभेद सम्बन्ध है जैसे पत्नी को अर्धागनी भी कहते हैं अर्थात् दुर्गा ब्रह्म ( काल ) की पत्नी है । एक ब्रह्माण्ड की सृष्टी रचना के विषय में राजा श्री परीक्षित के पूछने पर श्री व्यास जी ने बताया कि मैंने श्री नारद जी से पूछा था कि हे देवर्षे ! इस ब्रह्मण्ड की रचना कैसे हुई ? मेरे इस प्रश्न के उत्तर में श्री नारद जी ने कहा कि मैंने अपने पिता श्री ब्रह्मा जी से पूछा था कि हे पिता श्री इस ब्रह्माण्ड की रचना आपने की या श्री विष्णु जी इसके रचयिता हैं या शिव जी ने रचा है ? सच - सच बताने की कृपा करें । तब मेरे पूज्य पिता श्री ब्रह्मा जी ने बताया कि बेटा नारद , मैंने अपने आपको कमल के फूल पर बैठा पाया था , मुझे नहीं मालूम इस अगाध जल में मैं कहाँ से उत्पन्न हो गया । एक हजार वर्ष तक पृथ्वी का अन्वेषण करता रहा , कहीं जल का ओर - छोर नहीं पाया । फिर आकाशवाणी हुई कि तप करो । एक हजार वर्ष तक तप किया । फिर सृष्टी करने की आकाशवाणी हुई । इतने में मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस आए , उनके भय से मैं कमल का डण्ठल पकड़ कर नीचे उतरा । वहाँ भगवान विष्णु जी शेष शैय्या पर अचेत पड़े थे । उनमें से एक स्त्री ( प्रेतवत प्रविष्ट दुर्गा ) निकली । वह आकाश में आभूषण पहने दिखाई देने लगी । तब भगवान विष्णु होश में आए । अब मैं तथा विष्णु जी दो थे । इतने में भगवान शंकर भी आ गए । देवी ने हमें विमान में बैठाया तथा ब्रह्म लोक में ले गई । वहाँ एक ब्रह्मा , एक विष्णु तथा एक शिव और देखा फिर एक देवी देखी , उसे देख कर विष्णु जी ने विवेक पूर्वक निम्न वर्णन किया ( ब्रह्म काल ने भगवान् विष्णु को चेतना प्रदान कर दी , उसको अपने बाल्यकाल की याद आई तब बचपन की कहानी सुनाई। )
पृष्ठ नं . 119 - 120 पर भगवान विष्णु जी ने श्री ब्रह्मा जी तथा श्री शिव जी से कहा कि यह हम तीनों की माता है , यही जगत् जननी प्रकृति देवी है । मैंने इस देवी को तब देखा था जब मैं छोटा सा बालक था , यह मुझे पालने में झुला रही थी ।
तीसरा स्कंद पृष्ठ नं . 123 पर श्री विष्णु जी ने श्री दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा - तुम शुद्ध स्वरूपा हो , यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है , मैं ( विष्णु ) , ब्रह्मा और शंकर हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं । हमारा आविर्भाव ( जन्म ) और तिरोभाव ( मृत्यु ) हुआ करता है अर्थात् हम तीनों देव नाशवान हैं , केवल तुम ही नित्य ( अविनाशी ) हो , जगत जननी हो , प्रकृति देवी हो ।
भगवान शंकर बोले - देवी यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट ( उत्पन्न) हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे ही बालक हुए । फिर मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम्ही हो ।
विचार करें : - उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि श्री ब्रह्मा जी , श्री विष्णु जी , श्री शिव जी नाशवान हैं । मृत्युंजय ( अजर - अमर ) व सर्वेश्वर नही हैं दुर्गा ( प्रकृति ) के पुत्र हैं तथा ब्रह्म ( काल - सदाशिव ) इनका पिता है ।
तीसरा स्कंद पृष्ठ नं . 125 पर ब्रह्मा जी के पूछने पर कि हे माता ! वेदों में जो ब्रह्म कहा है वह आप ही हैं या कोई अन्य प्रभु है ? इसके उत्तर में यहाँ तो दुर्गा कह रही है कि मैं तथा ब्रह्म एक ही हैं । फिर इसी स्कंद अ . 6 के पृष्ठ नं . 129 पर कहा है कि अब मेरा कार्य सिद्ध करने के लिए विमान पर बैठ कर तुम लोग शीघ्र पधारो ( जाओ ) । कोई कठिन कार्य उपस्थित होने पर जब तुम मुझे याद करोगे , तब मैं सामने आ जाऊँगी । देवताओं मेरा ( दुर्गा का ) तथा ब्रह्म का ध्यान तुम्हें सदा करते रहना चाहिए । हम दोनों का स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे कार्य सिद्ध होने में तनिक भी संदेह नहीं है ।
उपरोक्त व्याख्या से स्वसिद्ध है कि दुर्गा ( प्रकृति ) तथा ब्रह्म ( काल ) ही तीनों देवताओं के माता - पिता हैं तथा ब्रह्मा , विष्णु व शिव जी नाशवान हैं व पूर्ण शक्ति युक्त नहीं हैं ।
तीनों देवताओं ( श्री ब्रह्मा जी , श्री विष्णु जी , श्री शिव जी ) की शादी दुर्गा ( प्रकृति देवी ) ने की । पृष्ठ नं . 128 - 129 पर , तीसरे स्कंद में ।
गीता अध्याय नं . 7 का श्लोक नं . 12
ये , च , एव , सात्विकाः , भावाः , राजसाः , तामसाः , च , ये, मतः , एव , इति , तान् , विद्धि , न , तु , अहम् , तेषु ,ते,मयि।। अनुवाद : ( च ) और ( एव ) भी ( ये ) जो ( सात्विकाः ) सत्वगुण विष्णु जी से स्थिति ( भावाः ) भाव हैं और ( ये ) जो ( राजसाः ) रजोगुण ब्रह्मा जी से उत्पत्ति ( च ) तथा ( तामसाः ) तमोगुण शिव से संहार हैं ( तान् ) उन सबको तू ( मतः , एव ) मेरे द्वारा सुनियोजित नियमानुसार ही होने वाले हैं ( इति ) ऐसा ( विद्धि ) जान ( तु ) परन्तु वास्तवमें ( तेषु ) उनमें ( अहम ) मैं और ( ते ) वे ( मयि ) मुझमें ( न ) नहीं हैं । "
विस्तृत विवरण के लिए कृप्या अगले आर्टिकल का इंतजार करें !
मैं मिलूंगा आपसे ऐसी ही रोचक जानकारी के साथ ।
धन्यवाद !
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