srshti rachana
नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे।उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं।
गीता अध्याय नं 15 का श्लोक नं . 17
उत्तमः ,.पुरुष , तु , अन्यः , परमात्मा , इति , उदाहृतः , यः , लोकत्रयम् आविश्य , बिभर्ति , अव्ययः , ईश्वरः । ।
अनुवाद:( उत्तम: ) उत्तम ( पुरुष: ) प्रभु ( तु ) तो ( अन्य: ) उपरोक्त दोनों प्रभुओं " क्षर पुरुष तथा अक्षर पुरुष " से भी अन्य ही है ( इति ) यह वास्तव में ( परमात्मा ) परमात्मा ( उदाहृतः ) कहा गया है ( य: ) जो ( लोकत्रयम् ) तीनों लोकों में ( आविश्य ) प्रवेश करके ( बिभर्ति ) सबका धारण पोषण करता है एवं ( अव्यय: ) अविनाशी ( ईश्वर: ) ईश्वर ( प्रभुओं में श्रेष्ठ अर्थात् समर्थ प्रभु ) है । भावार्थ - गीता ज्ञान दाता प्रभु ने केवल इतना ही बताया है कि यह संसार उल्टे लटके वृक्ष तुल्य जानो । ऊपर जड़ें ( मूल ) तो पूर्ण परमात्मा है । नीचे टहनीयां आदि अन्य हिस्से जानों । इस संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग का भिन्न - भिन्न विवरण जो संत जानता है वह तत्वदर्शी संत है जिसके विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक नं . 34 में कहा है । गीता अध्याय 15 श्लोक नं . 2 - 3 में केवल इतना ही बताया है कि तीन गुण रूपी शाखा हैं । यहां विचारकाल में अर्थात् गीता में आपको मैं ( गीता ज्ञान दाता ) पूर्ण जानकारी नहीं दे सकता क्योंकि मुझे इस संसार की रचना के आदि व अंत का ज्ञान नहीं है । उस के लिए गीता अध्याय 4 श्लोक नं . 34 में कहा है कि किसी तत्व दर्शी संत से उस पूर्ण परमात्मा का ज्ञान जानों इस गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में उस तत्वदर्शी संत की पहचान बताई है कि वह संसार रूपी वृक्ष के प्रत्येक भाग का ज्ञान कराएगा । उसी से पूछो । गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में कहा है कि उस तत्वदर्शी संत के मिल जाने के पश्चात् उस परमपद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए अर्थात् उस तत्वदर्शी संत के बताए अनुसार साधना करनी चाहिए जिससे पूर्ण मोक्ष ( अनादि मोक्ष ) प्राप्त होता है । गीता अध्याय 15 श्लोक 16 - 17 में स्पष्ट किया है कि तीन प्रभु हैं एक क्षर पुरूष ( ब्रह्म) दूसरा अक्षर पुरुष ( परब्रह्म ) तीसरा परम अक्षर पुरुष ( पूर्ण ब्रह्म ) । क्षर पुरुष तथा अक्षर पुरूष वास्तव में अविनाशी नहीं हैं । वह अविनाशी परमात्मा तो इन दोनों से अन्य ही है । वही तीनों लोकों में प्रवेश करके सब का धारण पोषण करता है ।
उपरोक्त श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16 - 17 में यह प्रमाणित हुआ कि उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष की मूल अर्थात् जड़ तो परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म है जिससे पूर्ण वृक्ष का पालन होता है तथा वृक्ष का जो हिस्सा पृथ्वी के तुरन्त बाहर जमीन के साथ दिखाई देता है वह तना होता है उसे अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म जानों । उस तने से ऊपर चल कर अन्य मोटी डार निकलती है उनमें से एक डार को ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरुष जानों तथा उसी डार से अन्य तीन शाखाएं निकलती हैं उन्हें ब्रह्मा , विष्णु तथा शिव जानों तथा शाखाओं से आगे पत्ते रूप में सांसारिक प्राणी जानों । उपरोक्त गीता अध्याय 15 श्लोक 16 - 17 में स्पष्ट है कि क्षर पुरुष ( ब्रह्म ) तथा अक्षर पुरुष ( परब्रह्म ) तथा इन दोनों के लोकों में जितने प्राणी है । उनके स्थूल शरीर तो नाशवान हैं तथा जीवात्मा अविनाशी है अर्थात् उपरोक्त दोनों प्रभु व इनके अन्तर्गत सर्व प्राणी नाशवान हैं । भले ही सभा अविनाशी कहा है परन्तु वास्तव में अविनाशी परमात्मा तो इन दोनों से अन्य है । वह तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका पालन - पोषण करता है । उपरोक्त विवरण में तीन प्रमुओं का भिन्न - भिन्न विवरण दिया है ।
उपरोक्त श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16 - 17 में यह प्रमाणित हुआ कि उल्टे लटके हुए संसार रूपी वृक्ष की मूल अर्थात् जड़ तो परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् पूर्ण ब्रह्म है जिससे पूर्ण वृक्ष का पालन होता है तथा वृक्ष का जो हिस्सा पृथ्वी के तुरन्त बाहर जमीन के साथ दिखाई देता है वह तना होता है उसे अक्षर पुरुष अर्थात् परब्रह्म जानों । उस तने से ऊपर चल कर अन्य मोटी डार निकलती है उनमें से एक डार को ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरुष जानों तथा उसी डार से अन्य तीन शाखाएं निकलती हैं उन्हें ब्रह्मा , विष्णु तथा शिव जानों तथा शाखाओं से आगे पत्ते रूप में सांसारिक प्राणी जानों । उपरोक्त गीता अध्याय 15 श्लोक 16 - 17 में स्पष्ट है कि क्षर पुरुष ( ब्रह्म ) तथा अक्षर पुरुष ( परब्रह्म ) तथा इन दोनों के लोकों में जितने प्राणी है । उनके स्थूल शरीर तो नाशवान हैं तथा जीवात्मा अविनाशी है अर्थात् उपरोक्त दोनों प्रभु व इनके अन्तर्गत सर्व प्राणी नाशवान हैं । भले ही सभा अविनाशी कहा है परन्तु वास्तव में अविनाशी परमात्मा तो इन दोनों से अन्य है । वह तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका पालन - पोषण करता है । उपरोक्त विवरण में तीन प्रमुओं का भिन्न - भिन्न विवरण दिया है ।
" पवित्र बाईबल तथा पवित्र कुरान शरीफ में सृष्टी रचना का प्रमाण "
इसी का प्रमाण पवित्र बाईबल में तथा पवित्र कुरान शरीफ में भी है । कुरान शरीफ में पवित्र बाईबल का भी ज्ञान है , इसलिए इन दोनों पवित्र सग्रन्थों मिल - जुल कर प्रमाणित किया है कि कौन तथा कैसा है सृष्टी रचनहार तथा उसका वास्तविक नाम क्या है ।
पवित्र बाईबल ( उत्पत्ति ग्रन्थ पृष्ठ नं . 2 पर , अ . 1:20 - 2:5 पर)
छटवां दिन : - प्राणी और मनुष्यः
अन्य प्राणियों की रचना करके 26 . फिर परमेश्वर ने कहा , हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं , जो सर्व प्राणियों को काबू रखेगा । 27 . तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया , अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया , नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टी की ।
29 . प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीज वाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं , ( मांस खाना नहीं कहा है । )
सातवां दिन : - विश्राम का दिनः
परमेश्वर ने छः दिन में सर्व सृष्टी की उत्पत्ति की तथा सातवें दिन विश्राम किया ।
पवित्र बाईबल ने सिद्ध कर दिया कि परमात्मा मानव सदृश शरीर में है , जिसने छ : दिन में सर्व सृष्टी की रचना की तथा फिर विश्राम किया ।
पवित्र कुरान शरीफ ( सुरत फुर्कानि 25 , आयत नं . 52 , 58 , 59 )
आयत 52 : - फला तुतिअल् - काफिरन् व जहिद्हुम बिही जिहादन् कबीरा ( कबीरन् ) | l52 |
इसका भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी का खुदा ( प्रभु ) कह रहा है कि हे पैगम्बर ! आप काफिरों ( जो एक प्रभु की भक्ति त्याग कर अन्य देवी - देवताओं तथा मूर्ति आदि की पूजा करते हैं ) का कहा मत मानना , क्योंकि वे लोग कबीर को पूर्ण परमात्मा नहीं मानते । आप मेरे द्वारा दिए इस कुरान के ज्ञान के आधार पर अटल रहना कि कबीर ही पूर्ण प्रभु है तथा कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष करना ( लड़ना नहीं ) अर्थात् अडिग रहना ।
आयत 58 : - व तवक्कल् अलल् - हखिल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही व कफा बिही बिजुनूबि अिबादिही खबीरा ( कबीरा ) । । 58 । ।
भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु मानते हैं वह अल्लाह ( प्रभु ) किसी और पूर्ण प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है कि ऐ पैगम्बर उस कबीर परमात्मा पर विश्वास रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था । वह कभी मरने वाला नहीं है अर्थात् वास्तव में अविनाशी है । तारीफ के साथ उसकी पाकी ( पवित्र महिमा ) का गुणगान किए जा , वह कबीर अल्लाह ( कविर्देव ) पूजा के योग्य है तथा अपनेउपासकों के सर्व पापों को विनाश करने वाला है ।
आयत 59:- अल्ल्जी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अलल्अर्शि अर्रह्मान फस्अल् बिही खबीरन् ( कबीरन् ) । ।59 । ।
भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु ( अल्लाह ) कह रहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भी विद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छ : दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपने सत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो ( वैठ ) गया । उसके विषय में जानकारी किसी ( बाखबर ) तत्वदर्शी संत से पूछो ।
उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी तथा वास्तविक ज्ञान तो किसी तत्वदर्शी संत ( बाखबर ) से पूछो , मैं नहीं जानता । उपरोक्त दोनों पवित्र धर्मों ( ईसाई तथा मुसलमान ) के पवित्र शास्त्रों ने भी मिल - जुल कर प्रमाणित कर दिया कि सर्व सृष्टी रचनहार , सर्व पाप विनाशक , सर्व शक्तिमान , अविनाशी परमात्मा मानव सदृश शरीर में आकार में है तथा सत्यलोक में रहता है । उसका नाम कवीर है , उसी को अल्लाहु अकबिरू भी कहते हैं ।
आदरणीय धर्मदास जी ने पूज्य कबीर प्रभु से पूछा कि हे सर्वशक्तिमान ! आज तक यह तत्वज्ञान किसी ने नहीं बताया , वेदों के मर्मज्ञ ज्ञानियों ने भी नहीं बताया । इससे सिद्ध है कि चारों पवित्र कतेब ( कुरान शरीफ आदि ) झूठे हैं ।
पूर्ण परमात्मा ने कहा :
Comments
Post a Comment