srshti rachana
नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे।उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं।
" आदरणीय गरीबदास साहेब जी की अमृतवाणी में सृष्टी रचना का प्रमाण "
आदि रमैणी ( सद् ग्रन्थ पृष्ठ नं . 690 से 692 तक )
आदि रमैणी अदली सारा । जा दिन होते धुंधुंकारा । । 1 । । सतपुरुष कीन्हा प्रकाशा । हम होते तखत कबीर खवासा । । 2 । ।
मन मोहिनी सिरजी माया । सतपुरुष एक ख्याल बनाया । । 3 । ।
धर्मराय सिरजे दरबानी । चौसठ जुगतप सेवा ठानी । । 4 । । पुरुष पृथिवी जाकूं दीन्ही । राज करो देवा आधीनी । । 5 । । । ब्रह्मण्ड इकीस राज तुम्ह दीन्हा । मन की इच्छा सब जुग लीन्हा । । 6 । ।
माया मूल रूप एक छाजा । मोहि लिये जिनहूँ धर्मराजा । । 7 । ।
धर्म का मन चंचल चित धार्या । मन माया का रूप बिचारा । । 8 । ।
चंचल चेरी चपल चिरागा । या के परसे सरबस जागा । ।9 । । धर्मराय कीया मन का भागी । विषय वासना संग से जागी । । 10 । ।
आदि पुरुष अदली अनरागी । धर्मराय दिया दिल सें त्यागी । । 11 । ।
पुरुष लोक सें दीया ढहाही । अगम दीप चलि आये भाई । । 12 । ।
सहज दास जिस दीप रहता । कारण कौन कौंन कुल पंथा । । 13 । ।
धर्मराय बोले दरबानी । सुनो सहज दास ब्रह्मज्ञानी । । 14 । । चौसठ जुग हम सेवा कीन्ही । पुरुष पृथिवी हम कूं दीन्ही । । 15 । ।
चंचल रूप भया मन बौरा । मनमोहिनी ठगिया भौंरा । । 16 । ।
सतपुरुष के ना मन भाये । पुरुष लोक से हम चलि आये । । 7||
अगर दीप सुनत बड़भागी । सहज दास मेटो मन पागी । । 18 | |
बोले सहजदास दिल दानी । हम तो चाकर सत सहदानी । । 19||
सतपुरुष से अरज गुजारूं । जब तुम्हारा बिवाण उतारूं । ।20 । ।
सहज दास को कीया पीयाना । सत्यलोक लीया प्रवाना । | 21 | |
सतपुरुष साहिब सरबंगी । अविगत अदली अचल अभंगी । ।22 । ।
धर्मराय तुम्हरा दरबानी । अगर दीप चलि गये प्रानी । । 23 । ।
कौंन हुकम करी अरज अवाजा । कहां पठावौ उस धर्मराजा । । 24 । ।
भई अवाज अदली एक साचा । विषय लोक जा तीन्यूं बाचा । । 25 । ।
सहज विमाँन चले अधिकाई । छिन में अगर दीप चलि आई । । 26 । ।
हमतो अरज करी अनरागी । तुम्ह विषय लोक जावो बड़भागी । । 27 । ।
धर्मराय के चले विमाना । मानसरोवर आये प्राना । ।28 । । मानसरोवर रहन न पाये । दरै कबीरा थाना लाये ।।29 । । बंकनाल की विषमी बाटी । तहां कबीरा रोकी घाटी । । 30 । । इन पाँचों मिलि जगत बंधाना । लख चौरासी जीव संताना । । 31 । ।
ब्रह्मा विष्णु महेश्वर माया । धर्मराय का राज पठाया । ।32 । । यौह खोखा पुर झूठी बाजी । भिसति बैकुण्ठ दगासी साजी । । 33 । ।
कृतिम जीव भुलांने भाई । निज घर की तो खबरि न पाई । । 34 । ।
सवा लाख उपजें नित हंसा । एक लाख विनशें नित अंसा । । 35 । ।
उपति खपति प्रलय फेरी । हर्ष शोक जौंरा जम जेरी । । 36 ।।
पाँचों तत्त्व हैं प्रलय माँही । सत्त्वगुण रजगुण तमगुण झांई । । 37 । ।
आठों अंग मिली है माया । पिण्ड ब्रह्मण्ड सकल भरमाया । ।38। ।
या में सुरति शब्द की डोरी । पिण्ड ब्रह्मण्ड लगी है खोरी । ।39 । ।
श्वासा पारस मन गह राखो । खोल्हि कपाट अमीरस चाखो । । 40 । ।
सुनाऊं हंस शब्द सुन दासा । अगम दीप है अग है बासा | | 41 | |
पाँचों भवसागर जम दण्ड जमाना । धर्मराय का है तलबांना । ।42 । ।
ऊपर पद की नगरी । बाट बिहंगम बंकी डगरी । ।43 । । हमरा धर्मराय सों दावा । भवसागर में जीव भरमावा । ।44 । ।हम तो कहैं अगम की बानी । जहाँ अविगत अदली आप बिनानी । । 45 । ।
बंदी छोड़ हमारा नामं । अजर अमर है अस्थीर ठामं । ।46 । ।
जुगन जुगन हम कहते आये । जम जौरा सें हंस छुटाये । ।47 । ।
जो कोई माने शब्द हमारा । भवसागर नहीं भरमें धारा । । 48 । ।
या में सुरति शब्द का लेखा । तन अंदर मन कहो कीन्ही देखा । । 49। ।
दास गरीब अगम की बानी । खोजा हंसा शब्द सहदानी । ।50 । ।
उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि आदरणीय गरीबदास साहेब जी कह रहे है कि यहाँ पहले केवल अंधकार था तथा पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी सत्यलोक में तख्त ( सिंहासन ) पर विराजमान थे । हम वहाँ चाकर थे । परमात्मा ने ज्योति निरंजन को उत्पन्न किया । फिर उसके तप के प्रतिफल में इक्कीस ब्रह्मण्ड प्रदान किए । फिर माया ( प्रकृति ) की उत्पत्ति की । युवा दुर्गा के रूप पर मोहित होकर ज्योति निरंजन ( ब्रह्म ) ने दुर्गा ( प्रकृति ) से बलात्कार करने की चेष्टा की । ब्रह्म को उसकी सजा मिली । उसे सत्यलोक से निकाल दिया तथा शाप लगा कि एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों का प्रतिदिन आहार करेगा , सवा लाख उत्पन्न करेगा । यहाँ सर्व प्राणी जन्म - मृत्यु का कष्ट उठा रहे हैं । यदि कोई पूर्ण परमात्मा का वास्तविक शब्द ( सच्चानाम जाप मंत्र ) हमारे से प्राप्त करेगा , उसको काल की बंद से एडवा देंगे । हमारा बन्दी छोड़ नाम है । आदरणीय गरीबदास जी अपने गुरु व प्रभु कबीर परमात्मा के आधार पर कह रहे हैं कि सच्चे मंत्र अर्थात् सत्यनाम व सारशब्द की प्राप्ति कर लो , पूर्ण मोक्ष हो जायेगा । नहीं तो नकली नाम दाता संतों व महन्तों की मीठी मीठी बातों में फंस कर शास्त्र विधि रहित साधना करके काल जाल में रह जाओगे । फिर कष्ट पर कष्ट उठाओगे ।
विस्तृत विवरण के लिए कृप्या अगले आर्टिकल का इंतजार करें !
मैं मिलूंगा आपसे ऐसी ही रोचक जानकारी के साथ ।
धन्यवाद
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