srshti rachana


नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे।उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं।

"परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्डों की स्थापना " कबीर परमेश्वर ( कविर्देव ) ने आगे बताया है कि परब्रह्म ( अक्षर पुरुष ) ने कार्य में गफलत की क्योंकि यह मानसरोवर में सो गया तथा जब परमेश्वर ( मैंने अर्थात् कबीर साहेब ने ) उस सरोवर में अण्डा छोड़ा तो अक्षर पुरुष ( परब्रह्म )ने उसे क्रोध से देखा । इन दोनों अपराधों के कारण इसे भी सात संख ब्रह्मण्डो सहित सतलोक से बाहर कर दिया । दूसरा कारण अक्षर पुरुष ( परब्रह्म ) अपने साथी ब्रह्म ( क्षर पुरुष ) की विदाई में व्याकुल होकर परमपिता कविर्दव ( कबीर परमेश्वर ) की  याद भूलकर उसी को याद करने लगा तथा सोचा कि क्षर पुरुष (ब्रह्म)  तो बहुत  आनन्द मना रहा होगा , मैं पीछे रह गया तथा अन्य कुछ आत्माएँ जो परब्रह्म के  साथ सात संख ब्रह्मण्डों में जन्म - मृत्यु का कर्मदण्ड भोग रही हैं , उन हंसआत्माओं  की विदाई की याद में खो गई जो ब्रह्म ( काल ) के साथ इक्कीस ब्रह्मण्डो में फंसी हैं तथा पूर्ण परमात्मा , सुखदाई कविर्देव की याद भूला दी । परमेश्वर कविर् देव  के बार - बार समझाने पर भी आस्‍था कम नहीं हुई । परब्रह्म( अक्षर पुरुष) ने सोचा  कि मैं भी अलग स्थान प्राप्त करू तो अच्छा रहे । यह सोच कर राज्य प्राप्ति की इच्छा से सारनाम का जाप प्रारम्भ कर दिया । इसी प्रकार अन्य आत्माओं ने ( जो परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्डों में फंसी हैं ) सोचा कि वे जो ब्रह्म के साथ आत्माएं गई है वे तो वहाँ मौज - मस्ती मनाऐंगे , हम पीछे रह गय । परब्रह्म के मन में यह धारणा बनी कि क्षर पुरुष अलग होकर बहुत सुखी होगा । यह विचार कर अन्तरात्मा से भिन्न स्थान प्राप्ति की ठान ली । परब्रह्म ( अक्षर पुरुष) ने हठ योगनहीं किया , परन्तु केवल अलग राज्य प्राप्ति के लिए सहज ध्यान योग विशेष कसक  के साथ करता रहा । अलग स्थान प्राप्त करने के लिए पागलों की तरह विचरने लगा , खाना - पीना भी त्याग दिया । अन्य कुछ आत्माएँ उसके वैराग्य पर आसक्त होकर उसे चाहने लगी । पूर्ण प्रभु के पूछने पर परब्रह्म ने अलग स्थान माँगा तथा कुछ हंसात्माओं के लिए भी याचना की । तब कविर्देव ने कहा कि जो आत्मा आपके साथ स्वेच्छा से जाना चाहें उन्हें भेज देता हूँ । पूर्ण प्रभु ने पूछा कि कौन हंस आत्मा परब्रह्म के साथ जाना चाहता है , सहमति व्यक्त करे । बहुत समय उपरान्त एक हंस ने स्वीकृति दी , फिर देखा - देखी उन सर्व आत्माओं ने भी सहमति व्यक्त कर दी । सर्व प्रथम स्वीकृति देने वाले हंस को स्त्री रूप बनाया , उसका नाम ईश्वरी माया ( प्रकृति सुरति ) रखा तथा अन्य आत्माओं को उस ईश्वरी माया में प्रवेश करके अचिन्त द्वारा अक्षर पुरुष ( परब्रह्म ) के पास भेजा । ( पतिव्रता पद से गिरने की सजा पाई । ) कई युगों तक दोनों सात संख ब्रह्मण्डों में रहे , परन्तु परब्रह्म ने दुर्व्यवहार नहीं किया । ईश्वरी माया की स्वेच्छा से अंगीकार किया तथा अपनी शब्द शक्ति द्वारा नाखुनों से स्त्री इन्द्री ( योनि ) बनाई । ईश्वरी देवी की सहमति से संतान उत्पन्न की । इस लिए परब्रह्म के लोक ( सात संख ब्रह्मण्डों ) में प्राणियों को तप्तशिला का कष्ट नहीं है तथा वहाँ पशु - पक्षी भी ब्रह्म लोक के देवों से अच्छे चरित्र युक्त हैं । आयु भी बहुत लम्बी है , परन्तु जन्म - मृत्यु कर्माधार पर कर्मदण्ड तथा परिश्रम करके ही उदर पूर्ति होती है । स्वर्ग तथा नरक भी ऐसे ही बने हैं । परब्रह्म ( अक्षर पुरुष ) को सात संख ब्रह्मण्ड उसके इच्छा रूपी भक्ति ध्यान अर्थात् सहज समाधि विधि से की उस की कमाई के प्रतिफल में प्रदान किये तथा सत्यलोक से भिन्न स्थान पर गोलाकार परिधि में बन्द करके सात संख ब्रह्मण्डों सहित अक्षर ब्रह्म व ईश्वरी माया को निष्कासित कर दिया । पूर्ण ब्रह्म ( सतपुरुष ) असंख्य ब्रह्मण्डों जो सत्यलोक आदि में हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्मण्डों तथा परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्डों का भी प्रभु ( मालिक ) है अर्थात् परमेश्वर कविर्देव कुल का मालिक है । श्री ब्रह्मा जी , श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी आदि के चार - चार भुजाएं तथा 16 कलाएं हैं तथा प्रकृति देवी ( दुर्गा ) की आठ भुजाएं हैं तथा 64 कलाएं हैं । ब्रह्म ( क्षर पुरुष ) की एक हजार भुजाएं हैं तथा एक हजार कलाएं है तथा इक्की ब्रह्मण्ड़ों का प्रभु है । परब्रह्म ( अक्षर पुरुष ) की दस हजार भुजाएं हैं तथा दस हजार कला हैं तथा सात संख ब्रह्मण्डों का प्रभु है । पूर्ण ब्रह्म ( परम अक्षर पुरुष अर्थात् सतपुरुष ) की असंख्य भुजाएं तथा असंख्य कलाएं हैं तथा ब्रह्म के इक्कीस ब्रह्माण्ड व परब्रह्म के सात संख ब्रह्मण्डों सहित असंख्य  ब्रह्मण्डों का प्रभु है। प्रत्येक प्रभु अपनी  सर्व भुजाओं को समेट कर केवल दो भुजाएं भी रख सकते हैं तथा जब चाहें सर्व भुजाओं को भी प्रकट कर सकते है। पूर्ण परमात्मा परब्रह्म के  प्रत्येक ब्रह्मण्ड मे भी अलग स्थान बनाकर अन्य रूप में गुप्त रहता है। यूं समझो जैसे एक घूमने वाला कैमरा बाहरलगा देते है तथा अन्दर टीवी (टेलिवीजन) रख देते है।

 टी.वी.  पर बाहर का सर्व दृश्य नजर आता है तथा दूसरा टी वी . बाहर रख  कर अन्दर का कैमरा स्थाई करके रख दिया जाए , उसमें केवल अन्दर बैठे प्रबन्धक का चित्र दिखाई देता है । जिससे सर्व कर्मचारी सावधान रहते हैं । इसी प्रकार पूर्ण परमात्मा अपने सतलोक में बैठ कर सर्व को नियंत्रित किए हुए हैं तथा प्रत्येक ब्रह्मण्ड में भी सतगुरु कविर्देव विद्यमान रहते हैं जैसे सूर्य दूर होते हुए भी अपना प्रभाव अन्य लोकों में बनाए हुए है ।

विस्तृत विवरण  के लिए कृप्या अगले आर्टिकल का इंतजार करें !

मैं मिलूंगा आपसे ऐसी ही रोचक जानकारी के साथ ।
     
धन्यवाद !

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