srshti rachana
नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे।उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं।
*परमात्मा साकार है तथा उसका नाम कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है*
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(गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में भी प्रमाण है।)
भावार्थ है. कि पूर्णब्रह्म का शरीर का नाम कबीर (कविर देव) है। उस परमेश्वर का शरीर *नूर तत्व* से बना है।परमात्मा का शरीर अति सूक्ष्म है जो उस साधक को दिखाई देता है जिसकी *दिव्य दृष्टि* खुल चुकी है। इस प्रकार जीव का भी सूक्ष्म शरीर है जिसके ऊपर पाँच तत्व का खोल (कवर) अर्थात पाँच तत्व की काया चढ़ी होती है जो माता-पिता के संयोग से (शुक्रम) वीर्य से बनी है। शरीर त्यागने के पश्चात् जीव जिस भी योनी में जाता है। जीव का सूक्ष्म शरीर साथ रहता है। *वह शरीर उसी साधक को दिखाई देता है जिसकी दिव्य दृष्टि* खुल चुकी है। इस प्रकार परमात्मा व जीव की साकार स्थिति समझे ।
*‘भक्तों का वर्तमान विष के तुल्य होता है और परिणाम अमृत के तुल्य होता है’*
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गीता अध्याय 18 श्लोक नं. 36.37 :-
हे भरत श्रेष्ठ अर्जुन! तीन प्रकार के सुख को भी तू मुझसे सुन। भक्तों का *प्रारम्भिक जीवन कष्टमय* होता है क्योंकि वे परमात्मा की *भक्ति, सेवा, दान* आदि के अभ्यास में कष्ट उठाते हैं। जिस कारण से उनका वर्तमान जीवन *विष के तुल्य* दिखाई देता है,परंतु परिणाम में *अमृत के तुल्य* होता है क्योंकि परमात्मा की साधना से अमर लोक को प्राप्त होकर *सदा सुखी रहता* है, यह सात्विक सुख कहा गया है ।
*आज का प्रेरक प्रसङ्ग*
!! *मेरी ख्वाहिश* !!
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वह प्राइमरी स्कूल की टीचर थी | सुबह उसने बच्चों का टेस्ट लिया था और उनकी कॉपिया जांचने के लिए घर ले आई थी | बच्चों की कॉपिया देखते देखते उसके आंसू बहने लगे | उसका पति वही लेटे TV देख रहा था | उसने रोने का कारण पूछा। टीचर बोली, “सुबह मैंने बच्चो को ‘मेरी सबसे बड़ी ख्वाइश’ विषय पर कुछ पंक्तियां लिखने को कहा था ; एक बच्चे ने इच्छा जाहिर करी है की भगवन उसे टेलीविजन बना दे। यह सुनकर पतिदेव हंसने लगे।
टीचर बोली, “आगे तो सुनो बच्चे ने लिखा है यदि मै TV बन जाऊंगा, तो घर में मेरी एक खास जगह होगी और सारा परिवार मेरे इर्द-गिर्द रहेगा | जब मै बोलूँगा, तो सारे लोग मुझे ध्यान से सुनेंगे | मुझे रोका टोका नहीं जायेंगा और नहीं उल्टे सवाल होंगे | जब मै TV बनूंगा, तो पापा ऑफिस से आने के बाद थके होने के बावजूद मेरे साथ बैठेंगे | मम्मी को जब तनाव होगा, तो वे मुझे डाटेंगी नहीं, बल्कि मेरे साथ रहना चाहेंगी | मेरे बड़े भाई-बहनों के बीच मेरे पास रहने के लिए झगडा होगा |
यहाँ तक की जब TV बंद रहेंगा, तब भी उसकी अच्छी तरह देखभाल होंगी | और हा, TV के रूप में मै सबको ख़ुशी भी दे सकूँगा | “यह सब सुनने के बाद पति भी थोड़ा गंभीर होते हुए बोला , ‘हे भगवान ! बेचारा बच्चा …. उसके माँ-बाप तो उस पर जरा भी ध्यान नहीं देते !’ टीचर पत्नी ने आंसूं भरी आँखों से उसकी तरफ देखा और बोली, “जानते हो, यह बच्चा कौन है ?? हमारा अपना बच्चा…हमारा छोटू |” सोचिये, यह छोटू कही आपका बच्चा तो नहीं ।
*शिक्षा*:-
मित्रों, आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में हमें वैसे ही एक दूसरे के लिए कम वक़्त मिलता है , और अगर हम वो भी सिर्फ टीवी देखने , मोबाइल पर गेम खेलने और फेसबुक से चिपके रहने में गँवा देंगे तो हम कभी अपने रिश्तों की अहमियत और उससे मिलने वाले प्यार को नहीं समझ पायेंगे।
चलिए प्रयास करें की हमारी वजह से किसी छोटू को टीवी बनने के बारे में ना सोचना पड़े!
भाषा के विषयों में 100% अंक कितने सही
आज के छात्र पता नहीं कितने जीनियस हो गए हैं? हमेशा ही CBSE के रिजल्ट के बाद समझ ही नहीं आता है। गणित-विज्ञान को छोड़कर हिंदी और अंग्रेजी जो कि भाषाएं हैं, अच्छे- अच्छे महारथी भी उनके निबन्धात्मक प्रश्नपत्रों में सौ में सौ अंक नहीं ला सकते। क्या इन टॉपर्स ने कहीं पर एक भी ह्रस्व इ या दीर्घ ई में गलती नहीं की! क्या इन्हें पूरे व्याकरण का पता है!! क्या ये समास, सन्धि- विच्छेद, कारक आदि सब प्रकरणों में पारंगत हैं! क्या इनके लिए अलंकार, उपमा, गद्य, पद्य बिल्कुल धूल के बराबर हैं!!! आज अच्छे- अच्छे साहित्यकार और कवियों के लिए बहुत ही अजीब सी स्थिति है। भाषा का दस बीस प्रतिशत ही किसी विद्वान् से भी विद्वान् को ज्ञान होगा, शायद बड़े से बड़े हिंदी और अंग्रेजी के ज्ञाता को! शेक्सपीयर ने कहा था कि पृथ्वी के समस्त बालू के कण जैसे अंग्रेजी भाषा के ज्ञान में मुझे उसके एक कण के बराबर भी ज्ञान नहीं है!!
मेरे विचार से यह अच्छी स्थिति नहीं है। इस तरह बच्चे भाषा के ज्ञान को बहुत ही हल्के में लेंगे। आगे चलकर अच्छे साहित्यकारों, उपन्यासकारों और कवियों की बहुत ही ज्यादा कमी हो जायेगी। अंग्रेजी स्कूल तो वैसे ही हिंदी भाषा को कोई महत्त्व नहीं देते और इस तरह अंक बाँटने से इस भाषा की अहमियत और भी कम हो जाएगी। आज कुछ बच्चों को 500 में 499 और 498 अंक दे दिये गए हैं। क्या सच में कोई इतने अंक ला सकता है? यह सोचने और मंथन करने की बात है। अब इससे आगे इन बच्चों को करने के लिए बचा ही क्या है? इसी तरह एक छात्रा को गायन या वादन में सौ में सौ अंक दिए गए हैं। विस्मय अलंकार दादा ने बिल्कुल सही लिखा था, इनके आगे तानसेन भी शरमा जाएंगे। स्कूल के रिजल्ट देखकर ऐसा लगता है कि अब भाषाई विषय बड़े आसान हो गये हैं, इंग्लिश मीडियम वाला हिंदी विषय में पूरे 100 नंबर ला रहा है!!
भारत में केवल एक महापुरुष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के सम्बन्ध में यह बात प्रसिद्ध थी कि परीक्षक ने उनकी उत्तरपुस्तिका पर लिखा था -"Examinee is better than Examiner.'
लेकिन अब तो थोक में परीक्षार्थी परीक्षक से अधिक योग्य होने लगे हैं !!!
क्या ये बच्चे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद जी, महादेवी वर्मा जी, विलियम शेक्सपियर आदि विद्वानों से भी ज्यादा महान विद्वान् हैं ???
यदि उत्तर अशुद्ध अथवा शुद्ध लिखने पर उतने ही अंक, तो फिर सही उत्तर का कोई मूल्य नहीं!!!
इतने असम्भव अंक प्राप्त करने में छात्रों का कोई दोष नहीं है, बल्कि मूल्यांकन प्रणाली का है। शिक्षा की इस प्रकार की मूल्यांकन पद्धति में सुधार की बहुत ही ज्यादा आवश्यकता है, नहीं तो संस्कृत भाषा की तरह हिंदी का भी अस्तित्व खत्म हो जायेगा।
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