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Showing posts from July, 2019

srshti rachana

नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। " माता ( दुर्गा ) द्वारा ब्रह्मा को शाप देना "           तब माता ने ब्रह्मा से पूछा क्या तुझे तेरे पिता के दर्शन हुए ? ब्रह्मा ने कहा हाँ मुझे पिता को दर्शन हुए हैं । दुर्गा ने कहा साक्षी बता । तब ब्रह्मा ने कहा इन दोनों के समक्ष साक्षात्कार हुआ है । देवी ने उन दोनों लड़कियों से पूछा क्या तुम्हारे सामने ब्रह्म का साक्षात्कार हुआ है तब दानों ने कहा कि हाँ , हमने अपनी आँखों से देखा है । फिर भवानी ( प्रकृति ) को संशय हुआ कि मुझे तो ब्रह्म ने कहा था कि मैं किसी को दर्शन नहीं दूंगा , परन्त ये कहते हैं कि दर्शन हुए हैं । तब अष्टंगी ने ध्यान लगाया और काल / ज्योति निरंजन से पूछा कि यह क्या कहानी है ? ज्योति निंरजन जी ने कहा कि ये तीनों झूठ बोल रहे हैं । तब माता ने कहा तुम झूठ बोल रहे हो । आकाशवाणी हुई हैकि इन्हें कोई दर्शन नहीं हुए । यह बात सुनकर ब्रह्मा ने कहा कि...

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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। " ब्रह्मा का अपने पिता ( काल / ब्रह्म ) की प्राप्ति के लिए प्रयत्न "                      तब दुर्गा ने ब्रह्मा जी से कहा कि अलख निरंजन तुम्हारा पिता है परन्तु वह तुम्हें दर्शन नहीं देगा । ब्रह्मा ने कहा कि मैं दर्शन करके ही लौटूंगा । माता ने पूछा कि यदि तुझे दर्शन नहीं हुए तो क्या करेगा ? ब्रह्मा ने कहा मैं प्रतिज्ञा करता हूँ । यदि पिता के दर्शन नहीं हुए तो मैं आपके समक्ष नहीं आऊंगा । यह कह कर ब्रह्मा जी व्याकुल होकर उत्तर दिशा की तरफ चल दिया जहाँ अन्धेरा ही अन्धेरा है । वहाँ ब्रह्मा ने चार युग तक ध्यान लगाया परन्तु कुछ भी प्राप्ति नहीं हुई । काल ने आकाशवाणी की कि दुर्गा सृष्टी रचना क्यों नहीं की ? भवानी ने कहा कि आप का ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मा जिद्द करके आप कीतलाश में गया है । ब्रह्म ( काल ) ने कहा उसे वापिस बुला लो । मैं उसे दर्शन नह...

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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। " ब्रह्म ( काल ) की अव्यक्त रहने की प्रतिज्ञा सुक्ष्म वेद से शेष सृष्टि रचना - - - - - -                               तीनों पुत्रों की उत्पत्ति के पश्चात् ब्रह्म ने अपनी पत्नी दुर्गा ( प्रकृति ) से कहा मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि भविष्य में मैं किसी को अपने वास्तविक रूप में दर्शन नहीं दूंगा । जिस कारण से मैं अव्यक्त माना जाऊँगा । दुर्गा से कहा कि आप मेरा भेद किसी को मत देना । मै गुप्त रहूँगा । दुर्गा ने पूछा कि क्या आप अपने पुत्रों को भी दर्शन नहीं दोगे ? ब्रह्म ने कहा मैं अपने पुत्रों को तथा अन्य को किसी भी साधना से दर्शन नहींदूगा , यह मेरा अटल नियम रहेगा । दुर्गा ने कहा यह तो आपका उत्तम नियम नही जो आप अपनी संतान से भी छुपे रहोगे । तब काल ने कहा दुर्गा मेरी विवशता है । मुझे एक लाख मानव शरीर धारी प्राणियों का आहार...

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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। "तीनों गुण क्या हैं ? प्रमाण सहित"  "तीनों गुण रजगुण ब्रह्मा जी , सतगुण विष्णु जी , तमगुण शिव जी हैं । ब्रह्म ( काल ) तथा प्रकृति ( दुर्गा ) से उत्पन्न हुए हैं तथा तीनों नाशवान हैं । प्रमाण : - गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिव महापुराण जिसके सम्पादक हैं । श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार पृष्ठ सं . 24 से 26 विद्यवेश्वर संहिता तथा पृष्ठ 10 अध्याय 9 रूद्र संहिता “ इस प्रकार ब्रह्मा - विष्णु तथा शिव तीनों देवताओं में गुण हैं , परन्तु शिव ( ब्रह्म - काल ) गुणातीत कहा गया है ।                   दूसरा प्रमाण : - गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार चिमन लाल गोस्वामी , तीसरा स्कंद , अध्याय 5 पृष्ठ 123 : - भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तुति की : कहा कि मैं ( विष्णु ) , ब्रह्मा तथा शंकर...

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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। "श्री ब्रह्मा जी , श्री विष्णु जी व श्री शिव जी की उत्पत्ति" काल ( बह्म ) ने प्रकृति ( दुर्गा ) से कहा कि अब मेरा कौन क्या बिगाडेगा ? मन १ करूगा प्रकृति ने फिर प्रार्थना की कि आप कुछ शर्म करो । प्रथम तो आप ने बड़े भाई हो , क्योंकि उसी पूर्ण परमात्मा ( कविर्देव ) की वचन शक्ति आप की बह्य की ) अण्डे से उत्पत्ति हुई तथा बाद में मेरी उत्पत्ति उसी परमेश्वर के वचन से हुई है । दूसरे मैं आपके पेट से बाहर निकली हैं , मैं आपकी बेटी हुई तथा आप मेरे पिता हुए । इन पवित्र नातों में बिगाड़ करना महापाप होगा । मेरे पास पिता की प्रदान की हुई शब्द शक्ति है , जितने प्राणी आप कहोगे मैं वचन से उत्पन्न कर दगी । ज्योति निरंजन ने दुर्गा की एक भी विनय नहीं सुनी तथा कहा कि मुझे जो सजा मिलनी थी मिल गई , मुझे सतलोक से निष्कासित कर दिया । अब मनमानी करूगा । यह कह कर काल पुरूष ( क्षर पुरूष ) ने प्रकृति के साथ जबर...

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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। " आत्माएं काल के जाल में कैसे फंसी ? " विशेष : - जब ब्रह्म ( ज्योति निरंजन ) तप कर रहा था हम सभी आत्माएँ , जो आज ज्योति निरंजन के इक्कीस ब्रह्मण्डों में रहते हैं इसकी साधना पर आसक्त हो गएर तथा अन्तरात्मा से इसे चाहने लगे । अपने सुखदाई प्रभु सत्य पुरूष से विमुख हो गए । जिस कारण से पतिव्रता पद से गिर गए । पूर्ण प्रभु के बार - बार सावधान करने पर भी हमारी आसक्ति क्षर पुरुष से नहीं हटी । ( यही प्रभाव आज भी काल सृष्टी में विद्यमान है । जैसे नौजवान बच्चे फिल्म स्टारों ( अभिनेताओं तथा अभिनेत्रियों ) की बनावटी अदाओं तथा अपने रोजगार उद्देश्य से कर रहे भूमिका पर अति आसक्त हो जाते हैं , रोकने से नहीं रूकते । यदि कोई अभिनेता या अभिनेत्री निकटवर्ती शहर में आ जाए तो देखें उन नादान बच्चों की भीड़ केवल दर्शन करने के लिए बह संख्या । में एकत्रित हो जाती हैं । लेना एक न देने दो ' रोजी रोटी अभिनेता...

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नमस्ते मैं तरूण , पिछले आर्टिकल में मैंने आप से वास्तविक भगवान के सम्बन्ध में कुछ प्रश्न पूछे थे। उन में से पहले प्रश्न का उत्तर अधूरा रह गया था मै आज उसे पूरा करने के लिए यह ब्लॉग लिख रहा हूं। विस्तृत विवरण के लिए कृप्या पढ़े निम्न लखित सृष्टी रचना : कविर्देव ( कबीर परमेश्वर ) ने सुक्ष्म वेद अर्थात् कर्विवाणी में अपने द्वारा रची सृष्टी का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है । सर्व प्रथम केवल एक स्थान ' अनामी ( अनामय ) लोक ' था । जिसे अकह लोक भी कहा जाता है , पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था । उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है । सभी आत्माएं उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी । इसी कविर्देव को उपमात्मक ( पदवी का ) नाम अनामी पुरुष है ( पुरुष का अर्थ प्रभु होता है । प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है , इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है । ) अनामी पुरूष के एक रोम कुप का प्रकाश संख सुर्यों की रोशनी से भी अधिक है । विशेष : - जैसे किसी देश के आदरणीय प्रधान मंत्री जी का शरीर का नाम तो अन्य होता है तथा पद का उपमात्मक ( पद...